निम्नलिखित (आगे के) पृष्ठों में एक सच्ची कहानी का सारांश दिया गया है। आपने जो कुछ अच्छी कहानियाँ पढ़ी या सुनी हैं यह कहानी उन्हीं की तरह है, परन्तु इस कहानी को आप जितना अधिक पढ़ेंगे, उतना ही अधिक आपको अहसास होगा कि यह केवल एक और कहानी नहीं है। यह एक ऐसी कहानी है जो हम सबको परिभाषित करती है। यह कहानी हमें यह सोचने के लिए बाध्य करती है कि हम कौन हैं और हम क्या बन सकते हैं। और इसलिए...
यह कहानी परमेश्वर के साथ आरम्भ होती है, जो हमेशा विद्दमान (अस्तित्व में) था। अगर आप को यह भ्रामक लगता है, तो यह भ्रामक है, क्योंकि परमेश्वर किसी की पूरी सोच से परे है।
आरम्भ में, परमेश्वर ने केवल अपने मुंह से कहा और सब कुछ अस्तित्व में आ गया। उसके आदेश देने से पूरी सृष्टि का निर्माण हुआ, और सृष्टि स्वर्ग, सितारों, नक्षत्रों के प्रभावशाली प्रकाशन से भर गयी, जिसमें पृथ्वी भी शामिल है। पृथ्वी पर अदन नाम की एक अलौकिक वाटिका थी। परमेश्वर ने जिस सुंदरता का निर्माण किया उसमें से सबसे उत्तम पुरुष और स्त्री थे... आदम और हव्वा। परमेश्वर ने आदम और हव्वा को अपनी पहचान में बनाया ताकि वे उसे प्रतिबिंबित करें। परमेश्वर को प्रेम करते हुए, उसकी सेवा करते हुए, और उसके साथ एक सम्बन्ध का आनंद लेते हुए, उसकी आराधना करने के भव्य उद्देश्य से उनका निर्माण किया गया था।
परमेश्वर की रूपरेखा के अनुसार सारी सृष्टि सामंजस्य में थी, और बिल्कुल वैसी ही थी जैसा उसे होना चाहिए था। उस समय कोई पीड़ा, दुख, बीमारी या मृत्यु नहीं थी। उस समय परमेश्वर और मनुष्य के बीच ... आदम तथा हव्वा के बीच ... और पूरी सृष्टि में पूरी तरह से प्रेम, स्वीकृति, और घनिष्टता थी। पर, कुछ भयंकर हुआ...
आदम और हव्वा का परमेश्वर के बराबर होना दूर की बात थी। फिर भी परमेश्वर ने जो कुछ बनाया था उन्हें उन सब पर प्रभारी ठहराया। परमेश्वर ने उन्हें फैसले करने और पृथ्वी पर शासन करने की स्वतंत्रता दी। परमेश्वर ने उन्हें केवल एक नियम दिया—उन्हें एक खास पेड़ का फल न खाने की आज्ञा दी। एक दिन परमेश्वर के एक शत्रु ने, एक पतित स्वर्गदूत, जो शैतान कहलाता है, परमेश्वर को पराजित करना चाहा। उसने एक सर्प का रूप धारण किया और आदम और हव्वा से झूठ बोला। शैतान ने उन्हें यह कहकर बहकाया और धोखा दिया कि परमेश्वर अच्छा नहीं है, और उसे उनके हित के बारे में ज़रा भी चिंता नहीं है। इसका परिणाम यह हुआ कि आदम और हव्वा ने जानबूझकर परमेश्वर की आज्ञा का उलंघन किया। विद्रोह में, यह फैसला करते हुए कि अच्छे और बुरे का फैसला परमेश्वर नहीं, वे स्वयं करेंगे, उन्होंने उस फल को खा लिया।
आदम और हव्वा के कार्यों का परिणाम बहुत विनाशकारी हुआ था। एक वायरस (विषाणु) की तरह पाप आदम और हव्वा के दिलों में और सारी सृष्टि में फ़ैल गया। पाप, पीड़ा, और दुख एक पीड़ी से दूसरी पीड़ी को पारित हुए। पूरी सृष्टि अपनी मूल रुपरेखा से दूषित हो गयी थी। हम सब ने युद्ध, गरीबी, लालच, और अनैतिकताओं की कहानियाँ सुनी हैं, जो आज भी हमारे संसार को परेशान करती है। ये सब पाप का परिणाम है।
जब हम उस उत्तमता और प्रेम के बारे मैं सोचते हैं जो सृष्टि के आरम्भ में विद्दमान था, तब हमें अहसास होता है कि हम अपनी कल्पना से बहुत अधिक दोषपूर्ण और पापी हैं। ज़रा सोचिये कि हम में कितने द्वेष हैं, हमने कितने झूठ बोले हैं, कितने ऐसे विचार थे जिन्हें प्रकट करने का हममें कभी साहस नहीं हुआ। अगर सच्चाई से हम अपने हृदयों में देखें तो सच प्रकट होता है – कि हम सब दोषी हैं। सब ने पाप किया है, और उसका अंततः परिणाम है ... एक स्नेही परमेश्वर से हमेशा के लिए अलगाव, भयंकर दुख, अप्रसन्नता है, जो शारीरिक मृत्यु से भी बुरा है। इन सब के कारण, हमें इस प्रश्न पर विचार करने की आवश्यकता है—क्या कुछ किया जा सकता है ? क्या कोई आशा है?
परमेश्वर ने आदम और हव्वा को उनके पाप के कारण अदन की वाटिका से निकाल दिया, पर उद्धार और आशा की एक प्रतिज्ञा की। उसने उनसे वादा किया कि उनके वंशजों में से कोई, एक दिन मानवजाति को पाप से बचने के लिए आएगा। अगली कई सदियों के समय में, परमेश्वर ने इस व्यक्ति के आने का मार्ग तैयार किया, जिसे इस संसार का उद्धारकर्ता बनना था। उसके जन्म, जीवन, और मृत्यु का सही विवरण उसके आने से कई सदियों पहले बाइबिल में लिख दिया गया था। वास्तव में, पूरी बाइबिल अंततः सारी मानवता के केंद्र बिंदु के रूप में इस एक व्यक्ति की ओर इशारा करती है। उसके आने का पूरा उद्देश्य "खोये हुओं को ढूँढना और उनका उद्धार करना था।" लूका 19:10
जिस उद्धारकर्ता की प्रतिज्ञा की गयी थी वह परमेश्वर ही था। लगभग 2000 साल पहले, परमेश्वर, यीशु मसीह के रूप में मनुष्य बना, और उसने पुराने नियम की सारी भविष्यवाणियों को पूरा किया। यीशु का जन्म चमत्कारी था क्योंकि उसकी माता कुंवारी थी। उसका जीवन अनोखा था: उसने बिना पाप किये परमेश्वर कि आज्ञा का पालन किया और उसमें आनंद लिया। अंततः यह क्रूस पर उसकी दुखभरी मृत्यु का कारण बना, क्योंकि उसने परमेश्वर की योजना के अनुसार अपनी ख़ुशी से, आज्ञा का पालन करते हुए और पर्याप्त रूप से मनुष्य के पापों का मोल चुकाने के लिए क्रूस पर अपने प्राण दे दिये। दया और अनुग्रह के सबसे महान प्रदर्शन में जिसे संसार ने शायद कभी ही अनुभव किया होगा, यीशु का जीवन और मृत्यु उसमें विश्वास करने वालों के लिए एक विकल्प बन गया। शैतान और पाप के निराशाजनक रूप से अपराधियों को बचाने के लिए पूरी तरह से निर्दोष एक व्यक्ति ने अपने प्राण दिये।
पर कब्र यीशु को अपने अन्दर न रख सकी। तीन दिनों के बाद, यीशु अपनी कब्र से बाहर निकल आया, और यीशु ने क्रूस पर अपनी मृत्यु के द्वारा पाप पर, और तीसरे दिन मृतकों में से जी उठने के द्वारा मृत्यु पर विजय प्राप्त करने के लिए अपने सांसारिक उद्देश्य को पूरा किया। 40 दिनों के बाद, वह स्वर्ग को लौट गया जहाँ वह एक उचित राजा के रूप में शासन करता है।
यह कहानी यहाँ समाप्त नहीं होती...
उन सब लोगों के लिए जो केवल उसमें विश्वास करते हैं परमेश्वर ने सब कुछ नया करने का वादा किया है। नया आकाश और नयी पृथ्वी पूरी तरह से पाप और स्वार्थ से रहित होंगी—परमेश्वर के साथ, दूसरों के साथ, और सृष्टि के साथ। यह एक सिद्ध मित्रता का स्थान होगा। अब तोड़ फोड़ मचाने वाले भूकंप, विनाशकारी सुनामी, या हिंसक तूफान पृथ्वी को परेशान नहीं करेंगे। अब कोई दुख, टूटे दिल, बीमारी या मृत्यु हमें नहीं सताएगी।
हर चीज़ वैसे ही बहाल की जाएगी जैसा उसे होना चाहिये था। जब उसके उद्धार में विश्वास करने वाले सब लोग, उसे प्रेम करने, उसकी सेवा करने, और उसके साथ हमेशा के सम्बन्ध का आनंद लेने के द्वारा उसकी आराधना करने के महान उद्देश्य में प्रवेश करेंगे, तब परमेश्वर का मूल उद्देश्य सम्पन्न होगा।
इस संसार का सबसे अद्भुत हिस्सा है... संपूर्ण आनंद का अनुभव करते हुए हम हमेशा के लिए परमेश्वर के साथ होंगे। हम अपने बनाने वाले, हमसे प्रेम करने वाले, और हमारे लिए मरने वाले परमेश्वर के साथ एक सिद्ध सम्बन्ध में बहाल किये जायेंगे। बच्चों के लेखक और विद्वान, सी. एस. लुइस ने इस संसार के इस पहले स्टेप को इस रूप से लिखा है, "महान कहानी का पहला अध्याय जिसे इस पृथ्वी पर किसी ने नहीं पढ़ा है: जो हमेश के लिए है: जिसमें हर अध्याय पहले अध्याय से बेहतर है।"
सृष्टि के सृजन से उसकी बहाली तक परमेश्वर एक अद्भुत कहानी लिख रहा है। उसने आपको उसकी आराधना करने, उसकी सेवा करने, और उसके साथ एक सम्बन्ध का आनंद लेने के लिए इस कहानी का एक हिस्सा होने के लिए बनाया है। परमेश्वर की इस कहानी में उसके साथ शामिल होकर, जब आप जीवन के रचियता को जान जाते हैं तब आपको क्षमा, उद्देश्य, और संतुष्टि प्राप्त होगा।
स्वयं को बचाने के लिए केवल यीशु पर भरोसा करना, विश्वास है। इसका मतलब है कि इस बात में विश्वास करने के बदले कि आप अपने आप को पापों के परिणामों से बचा सकते हैं, आप अपने भरोसा उस बचाव पर स्थानांतर कर दें जिसे उसने अपनी मृत्यु के द्वारा आपके लिए ख़रीदा है। अब आपकी निष्ठा (वफादारी) राजा, यीशु के लिए है। जो लोग यीशु के अलावा अपना भरोसा किसी और में रखते हैं, वे अपने आप को स्नेही परमेश्वर से, जिसने अपने एकलौते पुत्र को हमें अपने पापों से मुक्त कराने के लिए दे दिया, हमेशा के लिए अलग पाएंगे। यह दुखदायी अलगाव नरक कहलाता है।
परमेश्वर आपको इस कहानी का एक हिस्सा होने के लिए आमंत्रित कर रहा है जिसे वह आने वाले समय के लिए लिख रहा है। वह आज ही आपको उद्धार की भेंट दे रहा है, जो उस उद्धार के लिए आपका निमंत्रण है जो परमेश्वर देता है। आप परमेश्वर के इस बचाव को केवल इन बातों के द्वारा ग्रहण कर सकते हैं...
जिस पल से आप यीशु में विश्वास करते हैं, उसी समय से आप परमेश्वर की संतान बन जाते हैं। अब आप इस कहानी का हिस्सा बन गए हैं। परमेश्वर के साथ सम्बन्ध में आप जितना बढ़ते जाते हैं, आप अपने जीवन में इस कहानी को उतना ही अधिक देखने और समझने लगेंगे। आप के अतीत के और भविष्य के सारे पाप क्षमा कर दिये गए हैं, और अब आप उसके सामने पूरी स्वीकृति मिल गयी है। जब आप इस सम्बन्ध को आरम्भ करते हैं, तब यीशु जीवन के हर उतार-चढ़ाव, प्रसन्नता और कठिनाईयों में आपके साथ रहने का वादा करता है। वह आपसे चिरस्थायी, और अपरिवर्ती प्रेम करता है। और उसने न केवल अनंत जीवन देने का वादा किया है, वरन् वह आया ताकि आप इस जीवन में एक उद्देश्य, पूर्णता, और स्वतंत्रता का भी अनुभव कर सकें।